बस्तर के पंडी राम मंडावी को पद्मश्री, ‘सुलुर’ ने दिलाई राष्ट्रीय पहचान

0
20250528133009_pandiram

रायपुर { गहरी खोज }: छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल के गढ़बेंगाल निवासी पंडी राम मंडावी को वर्ष 2025 का पद्मश्री सम्मान प्रदान किया गया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने उन्हें यह प्रतिष्ठित सम्मान मंगलवार को राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में सौंपा। पंडी राम मंडावी को यह सम्मान जनजातीय वाद्य यंत्र निर्माण और काष्ठ शिल्प कला में उनके पांच दशकों के अद्भुत योगदान के लिए मिला है।
68 वर्षीय पंडी राम मंडावी, गोंड और मुरिया जनजाति की सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने और बढ़ाने में जीवन समर्पित कर चुके हैं। पारंपरिक वाद्य यंत्रों के निर्माण से लेकर लकड़ी पर की गई बारीक कारीगरी तक, उन्होंने बस्तर की संस्कृति को राष्ट्रीय मंच पर पहुंचाया। उनकी सबसे खास पहचान है — ‘बस्तर बांसुरी’ (सुलुर), जिसकी मधुर धुन ने देश-विदेश में श्रोताओं का ध्यान खींचा है।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने पंडी राम मंडावी को बधाई देते हुए कहा, “यह सम्मान केवल एक कलाकार का नहीं, बल्कि बस्तर की सांस्कृतिक आत्मा का सम्मान है। मंडावी जैसे साधकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि हमारी लोककला अंतरराष्ट्रीय पहचान बना सकती है।”
राष्ट्रपति भवन में हुए दूसरे चरण के पद्म पुरस्कार समारोह में इस वर्ष 68 विभूतियों को पद्मश्री से नवाज़ा गया, जिनमें छत्तीसगढ़ से पंडी राम मंडावी अकेले प्रतिनिधि रहे। पुरस्कार की घोषणा पहले ही 25 जनवरी को गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर कर दी गई थी।
पंडी राम मंडावी का जीवन कार्य सिर्फ कला निर्माण नहीं, बल्कि परंपरा, संवेदनशीलता और सृजन की यात्रा रहा है। उन्होंने ‘सुलुर’ के अलावा लकड़ी के उभरे चित्र, पारंपरिक मूर्तियां और शिल्पकृतियां तैयार कर, बस्तर की लोककला को देश और दुनिया में नई पहचान दिलाई है।
पंडी राम मंडावी को मिला पद्मश्री न केवल उनके जीवन भर की साधना का सम्मान है, बल्कि यह उन अनगिनत लोक कलाकारों और जनजातीय शिल्पियों की मान्यता भी है, जो बिना मंच और प्रचार के संस्कृति की मशाल जलाए हुए हैं। उनकी उपलब्धि से यह स्पष्ट है कि सच्ची लगन और परंपरा के प्रति निष्ठा हो, तो कोई भी कलाकार बस्तर जैसे सुदूर अंचल से निकलकर राष्ट्रीय गौरव बन सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *