राष्ट्रहित को राजनीतिक हितों से ऊपर रखेें: धनखड़

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नयी दिल्ली{ गहरी खोज } : उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने कहा है कि संस्थानों की तरह ही राजनीतिक दलों की भी राष्ट्रीय उद्देश्य के प्रति नैतिक जिम्मेदारी होती है और राष्ट्रीय सुरक्षा तथा आर्थिक प्रगति जैसे विषयों पर सभी दलों को राष्ट्रहित को अपने राजनीतिक हितों से ऊपर रखना चाहिए।
श्री धनखड़ ने मंगलवार को उपराष्ट्रपति निवास में ‘राज्यसभा इंटर्नशिप कार्यक्रम – चरण सात’ के उद्घाटन सत्र में कहा कि ऑपरेशन सिंदूर ने पूरे देश की सोच को पूरी तरह बदल दिया है। समाज पहले से कहीं अधिक राष्ट्रवादी हो गया है। सभी राजनीतिक दलों ने मिलकर विदेशों में भारत का शांति और आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता का संदेश दिया है। उन्होंने कहा कि भारतीय समाज को एकजुट रहना और मजबूत बनना होगा। संस्थानों की तरह ही राजनीतिक दलों की भी राष्ट्रीय उद्देश्य के प्रति नैतिक जिम्मेदारी होती है, क्योंकि सभी संस्थाओं का केंद्र राष्ट्रीय विकास, राष्ट्रीय कल्याण, सार्वजनिक कल्याण, पारदर्शिता, जवाबदेही और निष्ठा है। राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक प्रगति जैसे विषयों पर सभी दलों को राष्ट्रहित को अपने राजनीतिक हितों से ऊपर रखना चाहिए। उन्होंने कहा, “मैं सभी राजनीतिक वर्गों से अपील करता हूँ कि वे गहन चिंतन करें और इस निष्कर्ष पर पहुँचें कि इन विषयों पर सहमति होनी चाहिए। कभी-कभी राजनीति राष्ट्रवाद और सुरक्षा जैसे विषयों पर बहुत तेज हो जाती है। इसे हमें पार करना होगा।”
राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए स्वदेशी शक्ति की आवश्यकता पर बल देेते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि युद्ध से सबसे अच्छा बचाव तब होता है जब हम शक्ति की स्थिति में हों। उन्होंने कहा, “ शांति तब सुनिश्चित होती है जब आप युद्ध के लिए हमेशा तैयार रहें। शक्ति केवल तकनीकी क्षमता या पारंपरिक हथियारों से नहीं आती, बल्कि यह जनता से भी आती है।”
नागरिकों को उनके कर्तव्यों के पालन की आवश्यकता पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि संतुलन बनाए रखना ज़रूरी है। केवल अपने मौलिक अधिकारों की बात की जाती है और मौलिक कर्तव्यों के प्रति पूरी तरह उदासीन रहते हैं। मौलिक कर्तव्यों का सार राष्ट्रीय कल्याण को प्राथमिकता देना, लोक व्यवहार, अनुशासन, सार्वजनिक संवाद, पर्यावरण और जीवन में भलाई आदि में योगदान देना। उन्होंने कहा कि स्वदेशी का विचार आर्थिक राष्ट्रवाद से जुड़ा हुआ है। आर्थिक राष्ट्रवाद का मतलब है कि हम स्वदेशी वस्तुओं का उपभोग करें। ‘वोकल फॉर लोकल’ को अपनाएं। यह कारीगरों को प्रेरित करेगा कि वे हमारी आवश्यकताओं को पूरा करें।
श्री धनखड़ ने कहा कि भारतीय संसद एक साधारण विधायी निकाय नहीं है। यह आज 140 करोड़ लोगों की इच्छा का प्रतिबिंब है। यह एकमात्र वैधानिक संवैधानिक मंच है जो जनता की वास्तविक इच्छा को प्रकट करता है। इसलिए संसद कानून बनाने की अंतिम संस्था है। यह कार्यपालिका को उत्तरदायी ठहराती है। संसद बहस, संवाद, चर्चा और विमर्श का सर्वोच्च मंच है।
सहयोग और सहमति के महत्व पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि संविधान निर्माताओं ने ज्वलंत मुद्दों और अत्यंत संवेदनशील विषयों को सहयोग, समन्वय और सहमति के साथ सुलझाया।

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