शनि जयंती के दिन जरूर पढ़ें यह व्रत कथा, शनि देव की बरसेगी कृपा!
                धर्म { गहरी खोज } : हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या पर शनि जयंती मनाई जाती है, जो कि आज यानी 27 मई 2025 को है। शनि जयंती का दिन न्याय के देवता कहे जाने वाले शनि देव के जन्म का प्रतीक है। पौराणिक मान्यता है कि इस दिन शनि देव का प्राकट्य हुआ था। धार्मिक मान्यता है कि शनि जयंती के दिन शनि देव की पूजा के दौरान ज्येष्ठ अमावस्या की व्रत कथा पढ़ने से शनि दोष से मुक्ति मिलती है और जीवन की सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं। ऐसे में आइए पढ़ते हैं शनि जयंती की कथा।
शनि जयंती की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया के पुत्र शनि देव हैं। एक बार सूर्यदेव की पत्नी संज्ञा अपने पति के तेज से बहुत परेशान थीं और उनके तेज को सहन नहीं कर पाती थीं, इसलिए उन्होंने अपनी एक परछाई छाया बनाई, जिसका नाम संवर्णा था। संज्ञा ने छाया को अपनी जगह सूर्यदेव की सेवा में लगा दिया। संज्ञा ने संवर्णा से कहा कि वह उनके बच्चे मनु, यमराज और यमुना की देखभाल करें और किसी को इस बारे में न बताए। इसके बाद संज्ञा अपने पिता के घर चली गईं।
संवर्णा ने पूरी निष्ठा से संज्ञा का रूप लेकर सूर्यदेव और उनके बच्चों की देखभाल की। कुछ समय बाद संवर्णा गर्भवती हुईं और उनसे गर्भ से शनि देव का जन्म हुआ। छाया के गर्भ से जन्म लेने के कारण शनि देव का रंग काला था और उनका स्वभाव भी थोड़ा गंभीर था। सूर्यदेव को संवर्णा पर संदेह हुआ कि उनका पुत्र ऐसा नहीं हो सकता, क्योंकि शनि देव उनके जैसे तेजस्वी नहीं थे। इसपर सूर्य देव ने संवर्णा और शनिदेव का अपमान किया।
इस अपमान से संवर्णा बहुत दुखी हुईं। ऐसा कहा जाता है कि शनि देव की मां छाया ने शिव जी की इतनी कठोर तपस्या की, जिससे उनके शरीर में इतनी शक्ति आ गई कि गर्भ में पल रहे शनि देव का रंग काला पड़ गया और उनका स्वभाव भी तपस्वी जैसा हो गया। जब सूर्यदेव ने शनि देव का अपमान किया, तो शनि देव क्रोधित होकर सूर्यदेव की ओर देखा। शनि देव की दृष्टि पड़ते ही सूर्यदेव काले पड़ गए और उन्हें कुष्ठ रोग हो गया।
सूर्यदेव ने अपनी इस दशा से परेशान होकर भगवान शिव की आराधना की। तब भगवान शिव ने सूर्यदेव को बताया कि शनि देव उनके ही पुत्र हैं और उनका अपमान करने के कारण ही उन्हें यह कष्ट हुआ है। भगवान शिव के समझाने पर सूर्यदेव को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने शनि देव से क्षमा मांगी। इसके बाद सूर्यदेव को उनका पहले स्वरूप वापस मिल गया।
तब से ऐसा माना जाता है कि शनि देव अपने भक्तों पर कृपा करते हैं, लेकिन जो लोग गलत कार्य करते हैं या उनका अपमान करते हैं, उन्हें उनके कर्मों के अनुसार दंड देते हैं।
