वट सावित्री व्रत के दिन पूजा में पढ़ें यह खास व्रत कथा, मिलेगा अखंड सौभाग्य का वरदान!

धर्म { गहरी खोज } : पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि के दिन रखा जाता है। वत सावित्री व्रत को देशभर में अलग-अलग नामों जाना जाता है जैसे कि बड़मावस, बरगदाही, वट अमावस्या आदि। वट सावित्री का व्रत सबसे पहले राजा अश्वपति की पुत्री सावित्री ने अपने पति सत्यवान के लिए किया था। वट सावित्री व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। यह व्रत महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और परिवार की खुशहाली के लिए रखती हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस व्रत को पूरे विधि-विधान से करने से अखंड सौभाग्य का वरदान प्राप्त होता है।
वट सावित्री व्रत 2025 कब है?
हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह अमावस्या तिथि की शुरुआत 26 मई को दोपहर 12 बजकर 11 मिनट पर होगी। वहीं तिथि का समापन अगले दिन यानी 27 मई को सुबह 8 बजकर 31 मिनट पर होगा। ऐसे में वट सावित्री का व्रत सोमवार 26 मई को रखा जाएगा।
वट सावित्री व्रत कथा
वट सावित्री व्रत कथा का वर्णन स्कंद पुराण में मिलता है। स्कंद पुराण की कथा के अनुसार, देवी सावित्री के पति सत्यवान की मृत्यु हो जाने पर सावित्री द्वारा पति के प्राण वापस लाने की कथा का जिक्र वटसावित्री व्रत कथा में किया गया है। इस कथा के विषय में कहा गया है कि यह कथा सौभाग्य प्रदान करने वाला है। इसलिए वट सावित्री व्रत के दिन वट वृक्ष के नीचे सुहागन स्त्रियों को वट सावित्री व्रत की इस कथा का विस्तार पूर्वक पाठ करना चाहिए और सुहागन महिलाओं को इस कथा को सुनना चाहिए। इससे सुहाग की उम्र लंबी होती है और वैवाहिक जीवन में प्रेम और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। वट सावित्री व्रत कथा हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण कथा है जो विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी आयु और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए व्रत के रूप में मनाई जाती है। इस व्रत की कथा का मुख्य पात्र सावित्री और सत्यवान हैं।
देवी पार्वती जी ने कहा- हे देवताओं के भी देवता, जगत के पति शंकर भगवान, प्रभास क्षेत्र में स्थित ब्रह्माजी की प्रिया जो सावित्री देवी हैं, उनका चरित्र आप मुझसे कहिए। जो उनके व्रत का महात्म्य हो और उनके संबंध का इतिहास हो एवं जो स्त्रियों के पतिव्रत्य को देने वाला, सौभाग्यदायक और महान उदय करने वाला हो। तब शंकर भगवान ने कहा कि, हे महादेवी, प्रभास क्षेत्र में स्थित सावित्री के असाधारण चरित्र को मैं तुमसे कहता हूं। हे माहेश्वरी! सावित्री-स्थल नामक स्थान में राजकन्या सावित्री ने जिस प्रकार से उत्तम वट सावित्री व्रत का पालन किया।