अपरा एकादशी की इस कथा के बिना अधूरा माना जाता है व्रत? यहां पढ़ें पूरी कथा और पूजा विधि

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धर्म { गहरी खोज } : अपरा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है जिसे अत्यंत फलदायी माना जाता है। अपरा एकादशी की पूजा के बाद जल दान करने का भी विधान है। जेष्ठ माह में जल दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से प्रेत योनि, ब्रह्म हत्या और पाप आदि से मुक्ति मिलती है।

क्यों कहते हैं अपरा एकादशी?
पद्मपुराण में अपरा एकादशी के महत्व का बखान एक कथा के जरिये से किया गया है। पद्मपुराण में इस दिन से जुड़ी संपूर्ण कथा वर्णन है। कथा के अनुसार युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि ज्येष्ठ एकादशी का क्या महत्व है तब तब भगवान श्रीकृष्ण बोले युधिष्ठिर इस एकादशी को दो नामों से जाना जाता है एक नाम है अचला एकादशी और दूसरा नाम है अपरा एकादशी। इसका नाम अपरा एकादशी इसलिए है क्योंकि ये अपार और अचल धन देने वाली एकादशी है।

अपरा एकादशी की संपूर्ण कथा
पद्मपुराण में वर्णित कथा के अनुसार प्राचीन काल में महीध्वज नाम का एक धर्मात्मा राज करता था। उसका छोटा भाई वज्रध्वज उससे बैर रखता था साथ ही वो क्रूर, अधर्मी और अन्यायी था। एक दिन वज्रध्वज ने महीध्वज की हत्या करके उसे पीपल के नीचे गाड़ दिया। अकाल मृत्यु के कारण राजा प्रेतात्मा की योनि में पीपल पर ही वास करने लगा। एक दिन वहां से ॠषि धौम्य का गुजरना हुआ तो उन्होंने प्रेत की योनि भोग रहे राजा को भांप लिया और उसके उद्धार के लिए अपरा एकादशी का व्रत किया और अपने व्रत के फल को राजा को दे दिया जिसके फलस्वरूप राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गयी। ॠषि की इस अनुकंपा से राजा महीध्वज को प्रेत योनि से छुटकारा मिला और वो अंत में स्वर्ग लोक गया। यही कारण है कि इस व्रत को करने से प्रेत योनि से छूट जाने का आर्शीवाद मिलता है।

इस दिन की पूजा-विधि

सुबह सूर्य उदय से पहले उठकर स्नान कर लें।
उसके बाद पूजा स्थल की साफ सफाई करें।
भगवान श्री हरि विष्णु और लक्ष्मी का आसन सजाएं।
धूप, दीप, गंगाजल, पंचामृत, फूल फल, भोग आदि की व्यवस्था करें।
शंख में जल और पंचामृत भरकर भगवान श्री हरि विष्णु का जलाभिषेक करें।
भगवान को चंदन, सुगंध सहित पुष्प अर्पित करें।
दीपक प्रज्वलित करके अपरा एकादशी की कथा का पाठ करें।
भगवान श्री हरि विष्णु और लक्ष्मी जी का ध्यान करके उनके मंत्रों का जाप करें।
इस दिन भगवान को तुलसी का भोग लगाएं लेकिन ये तुलसी एक दिन पहले ही तोड़कर रखें। एकादशी को तुलसी तोड़ना निषेध है।

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