आखिर क्यों बड़मावस्या पर बरगद पर लपेटा जाता है 7 बार कच्चा सूत, जानिए क्या है इसकी मान्यता ?

0
vat-savitri-puja-ops-13-10-zoom_1717527174

धर्म { गहरी खोज } : हिंदू धर्म में बरगद के पेड़ की पूजा का खासा महत्व है। सनातन में वैसे भी बरगद के पेड़ को पूज्यनीय बताया गया है , लेकिन वट सावित्री व्रत के दिन इसकी पूजा का इतना खास क्यों माना जाता है। इन सारे सवालों के जवाब हमें हिंदू पौराणिक कथाओं में मिलते है। कहा जाता है बड़ के पेड़ में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास है। बरगद के पेड़ की जड़ें ब्रह्मा, तना विष्णु, और शाखाएं शिव का प्रतिनिधित्व करती हैं।

वट सावित्री पूजा ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन की जाती है। इस व्रत को विवाहित महिलाओं को सौभाग्य और समृद्धि देने वाला बताया जाता है। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत करती हैं। ज्येष्ठ मास की अमावस्या को वट सावित्री या बड़ा अमावस्या के नाम से जाना जाता है।

क्यों है इस दिन का महत्व
इस दिन के महत्व को लेकर कई पौराणिक मान्यताएं हैं उसी में एक है कि इस दिन सावित्री ने अपने तप से अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस लिये थे। तभी से इस व्रत की शरुआत हुई। महिलाएं सावित्री की तरह अपनी पति की लंबी आयु की प्रार्थना करती हैं। मान्यता है सावित्री की तरह इस व्रत को करने से उन्हें सुखी दाम्पत्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

कैसे होती है पूजा
सावित्री व्रत में विवाहित महिलाएं नहाकर श्रृंगार करती है और बिना अन्न जल ग्रहण किए, ज्येष्ठ की गर्मी में बड़ के पेड़ की पूजा करती हैं सावित्री व्रत में वट वृक्ष के तने के चारों ओर कच्चा सूत का धागा 7 बार बांधने की परंपरा है जिसका सभी स्त्रियां पूरी आस्था से पालन करती हैं।

लेकिन आखिर क्यों वट के पेड़ को ही ये बांधा जाता है 7 बार ही क्यों बांधा जाता है इसके पीछे का कारण जान लेते हैं। दरअसल मान्यता है कि, वट वृक्ष में सात बार कच्चा सूत लपेटने से पति-पत्नी का संबंध सात जन्मों के लिए एक दूसरे से बंध जाता है। वहीं उनके पति पर आने वाली विपदाएं टल जाती हैं। इस व्रत का संबंध सत्यवान सावित्री की कथा से जुड़ा है।

वट सावित्री की कथा
सदियों से प्रचलित वट सावित्री की कथा में वर्णित है कि इसी दिन यमराज ने सावित्री को उसके पति सत्यवान के प्राण लौटायें थे। जहां यमराज ने ये प्राण लौटाये वो वट वृक्ष ही था और उन्हें 100 पुत्रों का वरदान दिया था। तभी से वट वृक्ष की लटकती हुई शाखाओं को सावित्री स्वरूप माना जाता है और वट सावित्री व्रत और वट वृक्ष की पूजा की जाती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *