सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर की सुनवाई

नयी दिल्ली{ गहरी खोज }: उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर मंगलवार को सुनवाई की।
मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी की अगुवाई में याचिकाकर्ताओं ने नए प्रावधानों के कार्यान्वयन पर अंतरिम रोक लगाने का की गुहार लगाई। दोनों अधिवक्ताओं ने दलील देते हुए कहा कि वर्तमान स्वरूप यह कानून मौलिक धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत के समक्ष केंद्र सरकार का पक्ष रखा।
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अपनी शुरुआती दलीलों में 2025 के संशोधनों को केंद्र द्वारा वक्फ संपत्तियों का “धीरे-धीरे अधिग्रहण” करने की कोशिश करार दिया और कहा कि यह मुसलमानों के धार्मिक मामलों के प्रबंधन के अधिकार को कमजोर करता है। उन्होंने कहा कि नए प्रावधान दशकों से विकसित वक्फ ढांचे में एक व्यापक बदलाव है।
श्री सिब्बल ने वक्फ संपत्तियों का निर्धारण करने के लिए जांच तंत्र में उचित प्रक्रिया की कमी को भी रेखांकित किया। उन्होंने तर्क दिया,“नामित अधिकारी एक सरकारी अधिकारी होता है जो अपने मामले में न्यायाधीश के रूप में कार्य करता है।”
उन्होंने जोर देकर कहा कि वक्फ न्यायाधिकरण में तभी जाने की अनुमति है जब किसी संपत्ति को वक्फ का दर्जा देने से मना कर दिया जाता है।
श्री सिब्बल ने तर्क दिया कि ‘प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम 1958’ एक धर्मनिरपेक्ष कानून है, जिसका इस्तेमाल अब अल्पसंख्यक अधिकारों को कमजोर करने के लिए किया जा रहा है। उन्होंने कहा,“यदि किसी संपत्ति को प्राचीन स्मारक घोषित किया जाता है, तो वह अपने आप ही अपना वक्फ चरित्र खो देती है।”
वरिष्ठ अधिवक्ता श्री सिब्बल ने कहा,“यहां तक कि एक स्थानीय प्राधिकरण या पंचायत द्वारा विवाद उठाने पर भी धारा 3 के तहत संपत्ति का वक्फ का दर्जा छीन लिया जाता है।”
उन्होंने 2025 के कानून के तहत केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिमों के अनुपातहीन प्रतिनिधित्व पर भी प्रकाश डाला और दावा किया कि वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन का अधिकार कमजोर हो गया है। वजह यह कि 11 में से 7 सदस्य गैर-मुस्लिम हो सकते हैं।
संसदीय कानून की संवैधानिकता की धारणा पर मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणी का जवाब देते हुए, श्री सिब्बल ने कहा कि कानून पर रोक लगाने में विफलता अपूरणीय क्षति पहुंचाएगी, खासकर तब जब जिला कलेक्टर अब यह तय करते हैं कि कोई संपत्ति वक्फ है या सरकारी स्वामित्व वाली है।
केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से आग्रह किया कि सुनवाई को सरकार के हलफनामे में पहचाने गए तीन विशिष्ट मुद्दों तक सीमित रखा जाए कि क्या अदालतों द्वारा वक्फ घोषित की गई संपत्तियों को गैर-अधिसूचित किया जा सकता है, वक्फ-बाय-यूजर और वक्फ-बाय-डीड प्रावधानों की वैधता।
हालांकि,याचिकाकर्ताओं ने इस दृष्टिकोण का कड़ा विरोध किया, जिन्होंने तर्क दिया कि इस मामले में मौलिक संवैधानिक प्रश्न शामिल हैं और इस पर समग्रता में विचार किया जाना चाहिए।
इस मामले में पहले कोई रुख अपनाने में हिचकिचा रही केरल सरकार ने अब वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को चुनौती देने का फैसला किया है। राज्य के कानून मंत्री पी। राजीव ने पुष्टि की है कि शीर्ष अदालत में पक्षकार याचिका दायर करने के निर्देश जारी किए गए हैं।
यह घटनाक्रम मामले को राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बनाता है, खासकर तब जब कई भारतीय जनता पार्टी शासित राज्यों ने केंद्र के रुख का समर्थन किया है।
शीर्ष अदालत के समक्ष अपनी प्रारंभिक प्रतिक्रिया में केंद्र ने प्रस्तुत किया कि 2013 से वक्फ भूमि में 116 फीसदी की वृद्धि हुई है, जो 18।29 लाख एकड़ से बढ़कर 39।21 लाख एकड़ हो गई है।
केंद्र की ओर से कहा गया,“यह अभूतपूर्व वृद्धि मुगल काल के दौर से भी अधिक है।”