जीवन में ये 3 चीजें त्यागने से मिलता है मोक्ष, श्रीमद्भगवद्गीता में भी है जिक्र!

धर्म { गहरी खोज } :हिन्दू धर्म में श्रीमद्भगवद्गीता को न केवल एक धार्मिक ग्रंथ माना जाता है, बल्कि यह एक मूल्यवान पुस्तक भी है, जो हमारे जीवन का मार्गदर्शन करती है। इसमें भगवान कृष्ण द्वारा दी गई शिक्षाएं आज के जीवन के लिए बहुत ही आवश्यक हैं। उन्होंने गीता में तीन महत्वपूर्ण गलतियों का जिक्र किया है। जो लोगों के लिए बहुत नुकसानदायक हैं। वे कहते हैं कि ये चीजें हमारे आत्मविश्वास को कम करती हैं और हमें नरक के रास्ते पर ले जाने का जोखिम पैदा करती हैं। भगवद्गीता में काम, क्रोध और लोभ को व्यक्ति के पतन के द्वार बताया गया है। भगवद्गीता के अध्याय 16, श्लोक 21 में इनके बारे में साफ कहा गया है।
त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मन: | कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेत्तत्रयं त्यजेत् || 21||
नरक के तीन द्वार विनाश के द्वार हैं। वह तीन बुराइयों का त्याग करता है। काम, क्रोध, लोभ और आसक्ति। इसका अर्थ यह है कि ये तीन दुर्गुण (वासना, क्रोध और लोभ) नरक के द्वार हैं। अतः इन्हें लोगों को तुरन्त त्याग दिया जाना चाहिए।
वासना
वासना सामान्य इच्छाओं की तीव्रता और उन्हें किसी भी कीमत पर संतुष्ट करने की प्रबल इच्छा है। यदि यह इच्छा पूरी न हो तो मन में असंतोष गहराता जाता है। उस असंतोष से व्यक्ति अपना आत्मविश्वास खो देता है। अतृप्त इच्छाएं मनुष्य को स्वार्थ की ओर ले जाती हैं। वह स्वार्थवश दूसरों को हानि पहुंचाने की दिशा में कदम उठाता है। इस प्रकार वासना आत्मा को प्रदूषित करती है।
गुस्सा
क्रोध एक आग है जो भीतर जलती रहती है। इससे सर्वप्रथम हमारे भीतर विनाश प्रारम्भ होता है। क्रोध में व्यक्ति सही निर्णय नहीं ले सकता। वह सही और गलत के बीच का अंतर स्पष्ट रूप से नहीं देख पाता है। क्रोध हमारे शब्दों में कठोरता और घृणा बढ़ाता है। इससे हमारे आध्यात्मिक जीवन में गिरावट आती है।
लालच
लालची व्यक्ति के लिए कोई भी धनराशि पर्याप्त नहीं है। वह कभी संतुष्ट नहीं होगा। वह दूसरों से अधिक धन कमाना चाहता है। कुछ मामलों में, वह पैसे की खातिर धार्मिक सीमाओं को पार कर जाता है। यह धीरे-धीरे उसे गलत रास्तों पर ले जाता है। वह लालच के कारण पाप में पड़ जाता है।
अच्छी दिशा में आगे बढ़ता है जीवन
भगवान कृष्ण भगवद्गीता में कहते हैं कि इन तीन दोषों का पूरी तरह से त्याग करने पर ही व्यक्ति मोक्ष प्राप्त कर सकता है। आत्मरक्षा का पहला कदम वासना, क्रोध और लोभ पर नियंत्रण रखना है। इन पर नियंत्रण करके व्यक्ति शांति और गहन खुशी प्राप्त कर सकता है। अपने जीवन में भगवद्गीता की शिक्षाओं का अनुसरण करने से हमारी आत्मा के विकास में मदद मिलती है। इन तीनों दुर्गुणों को त्यागने तथा संयम से जीवन जीने के लिए अच्छे विचार तथा अच्छे कर्म आवश्यक हैं। जब हम इस मार्ग पर चलते हैं, तो जीवन अच्छी दिशा में आगे बढ़ता है।