कोई पद नहीं लूंगा, कानून से रिश्ता बना रहेगा :सीजेआई संजीव खन्ना

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नई दिल्ली{ गहरी खोज }: देश के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना का आज सुप्रीम कोर्ट में बतौर सीजेआई आखिरी दिन है। करीब छह महीने तक उन्होंने देश के 51वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में जिम्मेदारी निभाई। उनका कुल कार्यकाल सुप्रीम कोर्ट में साढ़े पांच वर्षों का रहा। इस दौरान वे कई ऐतिहासिक और संवेदनशील मामलों की सुनवाई करने वाली पीठों का हिस्सा रहे। सीजेआई संजीव खन्ना ने अपने वकालती जीवन की शुरुआत दिल्ली की जिला अदालत से की थी। इसके बाद वे दिल्ली हाईकोर्ट पहुंचे, जहां से उनका न्यायिक सफर शुरू हुआ। आज अपने विदाई भाषण में उन्होंने साफ कहा कि वे रिटायरमेंट के बाद कोई भी पद स्वीकार नहीं करेंगे, हालांकि वे कानून के क्षेत्र से जुड़े रहेंगे।
जस्टिस खन्ना ने अपने कार्यकाल के दौरान कई अहम और ऐतिहासिक फैसलों में भूमिका निभाई। वे उस बेंच का हिस्सा रहे जिसने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जमानत दी,चुनावी बॉन्ड (इलेक्टोरल बॉन्ड) योजना को असंवैधानिक घोषित किया,मंदिर-मस्जिद विवाद में नए सर्वे पर रोक लगाई, वक्फ संशोधन कानून में मुस्लिम पक्ष को राहत दी, अनुच्छेद 370 को खत्म करने के केंद्र सरकार के फैसले को बरकरार रखा। इन मामलों में न्यायिक विवेक और संविधान की भावना को ध्यान में रखते हुए उन्होंने संतुलित दृष्टिकोण अपनाया।
जस्टिस खन्ना ने आज कहा कि “मेरा कोई सीक्रेट नहीं है। एक जज तथ्यों के आधार पर चलता है।” जस्टिस यशवंत वर्मा से जुड़ी एक चर्चा पर उन्होंने कहा कि न्यायिक सोच में निष्पक्षता, निर्णायकता और तार्किक दृष्टिकोण जरूरी है। उन्होंने कहा कि “हम हर मुद्दे के सकारात्मक और नकारात्मक पक्षों को देखते हैं और फिर तर्कों के आधार पर फैसला करते हैं। भविष्य ही बताता है कि हमने जो निर्णय लिया वह कितना सही था।”
जस्टिस संजीव खन्ना के बाद सुप्रीम कोर्ट के अगले मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई होंगे। वे देश के पहले बौद्ध सीजेआई बनने जा रहे हैं। इसके साथ ही वे दलित समुदाय से आने वाले दूसरे ऐसे व्यक्ति होंगे जो सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पद तक पहुंचे हैं।
जस्टिस बीआर गवई का पारिवारिक इतिहास भी प्रेरणादायक है। उनके पिता आरएस गवई उन चार लाख लोगों में शामिल थे जिन्होंने 1956 में डॉ। भीमराव आंबेडकर के साथ नागपुर में बौद्ध धर्म अपनाया था। अब उनका बेटा देश की सर्वोच्च न्यायपालिका का नेतृत्व करेगा, जो सामाजिक न्याय की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है।

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