कब से शुरू होगा पितृपक्ष? एक क्लिक में जानें सही तिथि और उपाय

धर्म { गहरी खोज } : हिंदू धर्म में पितृपक्ष या श्राद्ध पक्ष का विशेष महत्व है। पंचांग के अनुसार, हर साल भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि से पितृ पक्ष की शुरुआत मानी जाती है और इसका समापन आश्विन मास की अमावस्या तिथि पर होता है। पितृपक्ष के 15 दिन बहुत ही शुभ माने जाता हैं। कहते है कि इस दौरान पितरों का तर्पण, श्राद्ध तथा पिंडदान करने सें पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और पितृ दोष से मुक्ति भी मिलती है। मान्यता के अनुसार, ऐसा करने पितर प्रसन्न होते हैं, जिससे जीवन में कभी किसी चीज की कमी नहीं होती।
कब से शुरू होगा पितृपक्ष?
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस साल पितृपक्ष यानी भाद्रपद माह की शुरुआत 07 सितंबर को देर रात 01 बजकर 41 मिनट पर शुरू होने जा रही है। वहीं इस तिथि का समापन 07 सितंबर को ही रात 11 बजकर 38 मिनट पर होगा। ऐसे में रविवार, 07 सितंबर 2025 के दिन से ही पितृपक्ष की शुरुआत होने जा रही है। वहीं इसका समापन सर्व पितृ अमावस्या यानी 21 सितंबर 2025 को होगा।
पितरों का आशीर्वाद पाने के लिए करें ये उपाय
हिंदू धर्म में पितरों को देव तुल्य माना गया है, उन्हें प्रसन्न रखना बहुत जरूरी होता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, पितरों के प्रसन्न होने पर जीवन में खुशहाली और धन-दौलत आती है। वहीं पितर नाराज हो जाएं, तो व्यक्ति का जीवन मुश्किलों से भर जाता है।
रोजाना जल अर्पित करें
पितृपक्ष में हर दिन तर्पण करना चाहिए, लेकिन जिनके माता पिता जीवित हैं उनके लिए तर्पण का नियम लागू नहीं होता है। जिनके माता पिता जीवित हैं वह रोज सुबह पितर और ईष्टदेवों का ध्यान करते हुए सूर्यदेव को जल अर्पित करें। वहीं जितने माता पिता जीवित नहीं है या दोनों में से एक नहीं है तो वे हर रोज पितृपक्ष में दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके तर्पण करें। तर्पण हमेशा जल में दूध और तिल मिलाकर करना चाहिए।
गौ माता की सेवा
पितृपक्ष में रोजाना गाय को चारा या भोजन बनाते समय पहली रोटी गाय को खिलाएं। ऐसा करने से देवी देवताओं की कृपा प्राप्त होती है। शास्त्रों में बताया गया है कि पितृपक्ष में पूरी भावना के साथ गाय को चार खिलाने से श्राद्धकर्म का पूरा फल मिलता है और पितर भी तृप्त होते है।
इस दिशा में जलाएं दीपक
पितृपक्ष में हर रोज सुबह शाम पितरों के नाम से एक दीप दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके जलाना चाहिए। मान्यता है कि पितृपक्ष में दक्षिण दिशा से ही पितर पृथ्वी लोक पर अपने रिश्तेदारों के यहां आते हैं। साथ ही जिस दिन पितरों का श्राद्ध कर्म कर रहे हैं, उस दिन दक्षिण दिशा की ओर मुख करके अपने पितरों का आह्वान करते हैं।