वेटिकन – भारत संबंध , शांति तथा मानवता

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संपादकीय { गहरी खोज }: वेटिकन, जो रोमन कैथोलिक चर्च का आध्यात्मिक और नैतिक केंद्र है, एक बार फिर विश्व को दिशा देने की तैयारी में है। पोप फ्रांसिस के निधन के पश्चात् अब पूरा विश्व उनके उत्तराधिकारी की प्रतीक्षा कर रहा है, ऐसे धर्मगुरु की, जो न केवल 1।4 अरब कैथोलिकों का नेतृत्व करे, बल्कि समस्त मानवता के लिए शांति, करुणा और सह-अस्तित्व का मार्ग भी प्रशस्त करे। यहां भारत और वेटिकन के प्रगाढ़ संबंधों का जिक्र करना अप्रासंगिक नहीं होगा कि
भारत और वेटिकन के संबंध दरअसल, राजनयिक सीमाओं में बंधे नहीं हैं। यह एक आध्यात्मिक और नैतिक संवाद का सेतु है, जिसकी नींव दशकों पूर्व पोप जॉन पॉल द्वितीय के भारत दौरे के समय रखी गई। तब से लेकर पोप बेनेडिक्ट और पोप फ्रांसिस तक, यह परंपरा लगातार प्रगाढ़ हुई है। भारत ने वेटिकन और पोप के पद की गरिमा को सदैव आदरपूर्वक स्वीकारा है।वेटिकन और भारत दोनों ने वैश्विक पटल पर शांति, सहिष्णुता और मानवीय मूल्यों का निरंतर संदेश दिया है। भारत, जो स्वयं श्रीमद्भगवद्गीता में वर्णित ‘क्षमा, शांति और आत्मसंयम’ जैसे गुणों को जीवन का मूल मानता है, महात्मा बुद्ध और महावीर की करुणा और गांधीजी की अहिंसा की परंपरा का संवाहक है।इसी भावभूमि पर वेटिकन के पोप का नेतृत्व एक साझा नैतिक दायित्व बन जाता है।पोप फ्रांसिस का कार्यकाल इस दायित्व की उत्कृष्ट
मिसाल रहा, दिवंगत पोप केवल एक धर्मगुरु नहीं, बल्कि पूरे विश्व के लिए करुणा, न्याय और पर्यावरण चेतना की आवाज बने।अब जब उनके उत्तराधिकारी की प्रतीक्षा की जा रही है, तो यह आशा की जा सकती है कि नए पोप भी इसी विरासत को आगे बढ़ाएंगे। उम्मीद है कि कैथोलिक चर्च को एक ऐसा नेतृत्व मिलेगा जो विभिन्न धर्मों के बीच संवाद को बढ़ावा दे, गरीबों और पीडि़तों की पीड़ा को समझे, और वैश्विक नैतिक चेतना को जागृत करे।भारत जैसे बहु धार्मिक देश में, जहां विविधता में एकता जीवन का दर्शन है, ऐसे पोप की आवश्यकता है,जो इस भावना से गहराई से जुड़ सके। क्योंकि जब वेटिकन और भारत साथ मिलकर बोलते हैं, तो दुनिया को एकता, शांति और सह-अस्तित्व का संदेश मिलता है,एक ऐसा संदेश जो आज के विभाजित और तनावग्रस्त विश्व में पहले से कहीं अधिक जरूरी हो गया है।दरअसल, 7 मई को सिस्टिन चैपल की चिमनी से उठने वाला सफेद धुआं न केवल एक नए पोप के चुनाव की घोषणा करेगा, बल्कि यह विश्वभर के कैथोलिकों और करोड़ों अन्य लोगों के लिए आध्यात्मिक आशा, नैतिक नेतृत्व और वैश्विक एकता के एक नए युग की शुरुआत का संकेत भी होगा।यह क्षण एक धार्मिक परंपरा भर नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक, सामाजिक और अंतरराष्ट्रीय महत्व की ऐतिहासिक घड़ी होगी। यह ध्यान रखना होगा कि पोप जीज़स के प्रेरित सेंट पीटर के उत्तराधिकारी माने जाते हैं। रोमन कैथोलिक चर्च के सर्वोच्च धर्मगुरु के रूप में पोप का स्थान केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और वैश्विक मुद्दों पर भी अत्यंत प्रभावशाली होता है।उनके शब्द शांति, न्याय, मानवता और करुणा के पक्ष में पूरी दुनिया में गूंजते हैं।भारत जैसे विविधतापूर्ण लोकतंत्र में, जहां ईसाई समुदाय भी समरसता का एक जीवंत प्रतीक है, पोप की भूमिका सामुदायिक एकता और अंतरधार्मिक संवाद को प्रोत्साहित करने में विशेष महत्व रखती है। बहरहाल,भारत के सन्दर्भ में यह चुनाव एक विशेष भावनात्मक जुड़ाव भी रखता है।हमारे देश ने सदैव वेटिकन के सर्वोच्च धर्मगुरु को गहरी श्रद्धा और गरिमा के साथ देखा है।भारत के तीन करोड़ ईसाइयों के लिए यह चुनाव आस्था और एकता का प्रतीक होगा, वहीं अन्य धर्मावलंबियों के लिए यह सहिष्णुता, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और वैश्विक नैतिकता की ओर एक और कदम होगा।

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