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संपादकीय { गहरी खोज }: केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने केंद्र सरकार द्वारा जातिगत जनगणना कराने की घोषणा करते हुए कहा कि जनगणना केंद्र के अधिकार क्षेत्र में आती है लेकिन कुछ राज्यों ने सर्वेक्षण के नाम पर जातिगत गणना ‘गैर-पारदर्शी’ तरीके से की, जिससे समाज में संदेह पैदा हुआ है। केंद्रीय मंत्री ने रेखांकित किया कि देश की आजादी के बाद से अब तक की सभी जनगणनाओं में जाति को बाहर रखा गया है। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस सरकारों ने हमेशा जाति गणना का विरोध किया और इस मुद्दे का इस्तेमाल ‘राजनीतिक हथियार’ के रूप में किया। वैष्णव ने कहा कि इन सभी तथ्यों पर विचार करते हुए और यह सुनिश्चित करने के लिए कि राजनीति के कारण सामाजिक ताना-बाना प्रभावित न हो, सर्वेक्षणों के बजाय जाति गणना को पारदर्शी तरीके से जनगणना में शामिल करने का निर्णय लिया गया है। उन्होंने कहा कि इससे हमारे समाज का सामाजिक, आर्थिक ढांचा मजबूत होगा और राष्ट्र भी प्रगति करता रहेगा। मंत्री ने आरोप लगाया कि विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों ने राजनीतिक कारणों से जाति आधारित सर्वेक्षण किए हैं। गौर हो कि कांग्रेस सहित विपक्षी दल देशव्यापी जाति गणना कराने की मांग करते रहे हैं। विपक्षी ‘इंडिया’ ने पिछले चुनावों में इसे एक प्रमुख मुद्दा बनाया था। तत्कालीन महागठबंधन सरकार के दौरान बिहार, तेलंगाना और कर्नाटक जैसे कुछ गैर-भाजपाई राज्यों में जाति आधारित सर्वेक्षण भी कराए गये। देश में हर 10 साल के अंतराल पर होने वाली जनगणना अप्रैल 2020 में शुरू होनी थी, लेकिन कोविड महामारी के कारण इसमें देरी हुई।
विपक्षी दल सरकार के जातिगत जनगणना कराने के निर्णय को ‘इंडिया’ गठबंधन की जीत करार दे रहे हैं। वहीं भाजपा व उसके सहयोगी दल इसे राष्ट्रहित में उठाया एक ऐतिहासिक कदम कह रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनावों से पहले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष व सांसद राहुल गांधी लगातार जातिगत जनगणना की मांग करते चले आ रहे हैं। चुनावों के दौरान जातिगत जनगणना एक मुद्दे के तौर पर सामने भी आई है। राहुल गांधी द्वारा उठाए इस मुद्दे का राजनीतिक दबाव मोदी सरकार पर बढ़ने लगा था। अब आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए व 2029 के लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने जातिगत जनगणना कराने की घोषणा कर जो दबाव राहुल गांधी व उनके सहयोगी सरकार व भाजपा पर बनाना चाहते थे, उसे मोदी सरकार के इस निर्णय ने एक प्रकार से कम कर दिया है। अब राहुल गांधी ने सरकार से मांग की है कि हमें तिथि बताई जाए और यह जनगणना किस प्रकार होगी यह भी बताया जाए।
गौरतलब है कि देश में स्वतंत्रता के पश्चात पहली बार जातिगत जनगणना होने जा रही है। जातिगत जनगणना के आधार पर ही भविष्य में कल्याणकारी योजनाओं का आधार तय होगा। 50 प्रतिशत आरक्षण को लेकर पुनः विचार हो सकेगा। जातियों में भी जो अति पिछड़ी जातियां हैं उनका पता चलेगा। इसके साथ-साथ देश की राजनीति में बुनियादी बदलाव का आधार भी जातिगत जनगणना बन जाएगी। जाति आधारित राजनीति के कारण समाज के विभाजित होने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी। जातिगत जनगणना को ईमानदारी से लागू किया गया तो यह देशहित में कदम रहेगा। अगर तुष्टिकरण की राजनीति शुरू हुई तो हानि होने की संभावना अधिक होगी। इसके साथ-साथ यह भी प्रश्न उठ रहा है कि क्या जातिगत जनगणना मुस्लिम व ईसाई समाज सहित अन्य धर्मों के लिए भी होगी या केवल हिन्दू समाज में ही होगी। धरातल का सत्य यह है कि भारत में सभी समुदाय और सभी धर्मों में जाति प्रथा आज भी प्रचलित है। उपरोक्त सभी पहलुओं पर गंभीरतापूर्वक विचार कर आगे बढ़ने की आवश्यकता है।

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