सद्गुणों से करें आत्मोन्नति, जीवन को करें सकारात्मक ऊर्जा से ओतप्रोत : सिद्धेश्वर ब्रह्मर्षि

कोलकाता{ गहरी खोज }: श्री सिद्धेश्वर तीर्थ ब्रह्मर्षि आश्रम तिरुपति के तत्वावधान में कोलकाता में आयोजित आध्यात्मिक कार्यक्रम ‘उत्कृष्टता को पाने का सुनीति पथ सद्गुणों से सफलता’ सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। इस अवसर पर श्री सिद्धेश्वर सिद्धगुरुवर ब्रह्मर्षि गुरुदेव ने श्रद्धालुओं को जीवन के परम सत्य, सद्गुणों की महत्ता और सकारात्मक सोच की शक्ति से अवगत कराया। गुरुदेव ने अपनी दिव्य वाणी से उपस्थित श्रद्धालुओं को आत्मचिंतन करने और जीवन को उत्कृष्टता की ओर ले जाने के लिए प्रेरित किया। कार्यक्रम का आयोजन सरला बोथरा (ग्लोबल महिला चेयरपर्सन, श्री सिद्धेश्वर ब्रह्मर्षि आश्रम तिरुपति) के मार्गदर्शन में हुआ, जबकि संजय व सिद्धार्थ मालू और उनकी टीम ने कुशलतापूर्वक संयोजन किया।
इस दौरान आगामी 12 जुलाई 2025, गुरु पूर्णिमा के अवसर पर दिल्ली के तालकटोरा इनडोर स्टेडियम में आयोजित होने वाले ब्रह्मर्षि गुरुदेव के भव्य आध्यात्मिक कार्यक्रम की भी जानकारी दी गई, जिसे लेकर भक्तों में भारी उत्साह है। कार्यक्रम में श्री सिद्धेश्वर ब्रह्मर्षि आश्रम तिरुपति के पश्चिम बंगाल के चेयरपर्सन जय भगवान, अध्यक्ष निर्मल कनोडिया, संयोजक अजीत सुराणा और कोलकाता अध्यक्ष रविंद्र चांद सहित ब्रह्मर्षि परिवार के सदस्य भी उपस्थित थे।
ब्रह्मर्षि गुरुदेव ने अपने प्रवचन में सकारात्मक सोच के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि दूसरों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखने से व्यक्ति स्वयं भी सकारात्मक बदलाव महसूस करता है। उन्होंने वर्तमान समय में समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करने की बजाय उनके समाधान खोजने का आह्वान किया। जीवन में सद्गुणों की महत्ता को बताते हुए गुरुदेव ने कहा कि सद्गुणों का अभ्यास ही सफलता का वास्तविक मार्ग खोलता है।
उन्होंने कहा कि सच्ची उत्कृष्टता केवल बाहरी उपलब्धियों से नहीं, बल्कि आंतरिक पवित्रता, शुद्ध आचरण और धर्ममय जीवन जीने के संकल्प से प्राप्त होती है। उन्होंने त्याग, सेवा, करुणा, क्षमा और सत्य जैसे सद्गुणों को अपनाकर स्वयं का उद्धार करने और समाज में सकारात्मकता फैलाने का संदेश दिया। गुरुदेव ने यह भी कहा कि जीवन की कठिनाइयाँ सद्गुणों की शक्ति से आत्मविकास की सीढ़ियाँ बन सकती हैं और सफलता आत्मा की परिपूर्णता और निरंतर साधना का परिणाम है।
समय के महत्व पर प्रकाश डालते हुए ब्रह्मर्षि गुरुदेव ने कहा कि सभी को एक दिन में 24 घंटे मिलते हैं, लेकिन सफलता और असफलता का अंतर इस बात पर निर्भर करता है कि इन घंटों का उपयोग किस उद्देश्य और संकल्प के साथ किया जाता है। उन्होंने समय को जीवन में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों के बीच का मौन अंतराल बताया, जिसे समझकर जीना ही सच्ची साधना है।
गुरुदेव ने जीवन को एक परीक्षा के रूप में वर्णित करते हुए कहा कि बीता हुआ समय व्यर्थ कागज है, वर्तमान समाचार पत्र है और भविष्य प्रश्न पत्र है। जीवन स्वयं एक उत्तर पुस्तिका है, जिसे सावधानीपूर्वक भरना चाहिए। उन्होंने समस्याओं पर अधिक समय न बिताकर उनके समाधान की ओर प्रयास करने का प्रेरक संदेश दिया। उन्होंने आज के समय में प्रेम में भी शर्तों की बात करते हुए भगवान के नि:स्वार्थ प्रेम की तुलना एक माता के प्रेम से की, जो अपने सभी बच्चों को उनकी अच्छाइयों और कमियों के साथ स्वीकार करती है।