मोहिनी एकादशी क्यों मनाई जाती है, कैसे शुरू हुई परंपरा?

धर्म { गहरी खोज } :हिन्दू धर्म में मोहिनी एकादशी का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु के मोहिनी स्वरूप की पूजा की जाती है। मोहिनी रूप भगवान विष्णु ने तब धारण किया था जब समुद्र मंथन के दौरान अमृत निकला था और उसे असुरों से बचाना था। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत रखने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति सांसारिक मोह-माया से मुक्त हो जाता है। मोहिनी एकादशी का व्रत करने से महान पुण्य प्राप्त होता है, जिसे हजार गायों के दान के बराबर माना जाता है। इस व्रत को करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति के आकर्षण प्रभाव में वृद्धि होती है।
पंचांग के अनुसार, वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 7 मई को सुबह 10 बजकर 19 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 8 मई को दोपहर 12 बजकर 29 मिनट पर समाप्त होगी। उदयातिथि के अनुसार, मोहिनी एकादशी का पर्व 8 मई को ही मनाया जाएगा। मोहिनी एकादशी का पारण 9 मई को किया जाएगा। पारण का शुभ समय सुबह 6 बजकर 6 मिनट से सुबह 8 बजकर 42 मिनट तक रहेगा।
मोहिनी एकादशी पर क्या करें
- मोहिनी एकादशी के दिन सुबह उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें और उन्हें पीले वस्त्र अर्पित करें।
- चंदन, अक्षत, फूल, तुलसी दल, धूप और दीप से भगवान विष्णु की पूजा करें।
- मोहिनी एकादशी की व्रत कथा सुनें या पढ़ें। दिन भर उपवास रखें (फलाहार कर सकते हैं)
- भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें। रात्रि में जागरण करें और भगवान विष्णु के भजन गाएं।
- अगले दिन द्वादशी तिथि को ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान दें, फिर व्रत का पारण करें।
- मोहिनी एकादशी का व्रत श्रद्धा और भक्ति के साथ करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
क्यों मनाई जाती है मोहिनी एकादशी?
जब देवताओं (देवों) और असुरों द्वारा समुद्र मंथन किया गया, तो उसमें से अमृत का कलश निकला। अमृत प्राप्त करने के लिए देवों और असुरों के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया। असुरों को अमर होने और ब्रह्मांड में अराजकता फैलाने से रोकने के लिए, भगवान विष्णु ने एक सुंदर और मनमोहक स्त्री का रूप धारण किया, जिसे मोहिनी कहा गया। अपने मोहिनी रूप में, भगवान विष्णु ने असुरों को अपनी सुंदरता से मोहित कर लिया। जब असुर मोहिनी के आकर्षण में खोए हुए थे, तब उन्होंने कुशलतापूर्वक देवताओं को अमृत वितरित कर दिया, जिससे देवताओं की विजय हुई और ब्रह्मांडीय संतुलन बहाल हुआ। मोहिनी एकादशी इस महत्वपूर्ण घटना की स्मृति में और भगवान विष्णु के मनमोहक मोहिनी रूप का सम्मान करने के लिए मनाई जाती है, जिन्होंने संसार को असुरों द्वारा संभावित विनाश से बचाया था।
कैसे शुरू हुई परंपरा?
मोहिनी एकादशी मनाने की परंपरा भगवान विष्णु के मोहिनी रूप धारण करने के बाद शुरू हुई। इस दिन के महत्व को धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में वर्णित कथाओं के माध्यम से और अधिक बल मिला। महाभारत में, भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को मोहिनी एकादशी के महत्व के बारे में बताया, और इसके पापों को धोने और महान पुण्य प्रदान करने की शक्ति पर प्रकाश डाला। एक अन्य किंवदंती के अनुसार, सीता की खोज के दौरान भगवान राम को ऋषि वशिष्ठ ने अपने दुख को कम करने और अपने पापों को शुद्ध करने के लिए मोहिनी एकादशी का व्रत करने की सलाह दी थी।
मोहिनी एकादशी से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा भद्रावती नगर के एक पापी राजकुमार धृष्टबुद्धि की है। अपने बुरे कर्मों के कारण उसे बहुत कष्ट भोगना पड़ा। एक दिन वह ऋषि कौण्डिन्य के आश्रम में पहुंचा और उनसे अपने पापों से मुक्ति का मार्ग पूछा। ऋषि ने उसे वैशाख शुक्ल की मोहिनी एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। धृष्टबुद्धि ने विधिपूर्वक व्रत किया, जिससे उसके सभी पाप नष्ट हो गए और अंत में उसे मोक्ष प्राप्त हुआ। तभी से मोहिनी एकादशी व्रत रखने की परंपरा शुरू हुई।
इन कथाओं और भगवान विष्णु के दिव्य कार्य ने मोहिनी एकादशी के महत्व को दृढ़ किया, जिससे यह उपवास, प्रार्थना और भगवान विष्णु के आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए समर्पित एक पवित्र दिन के रूप में मनाया जाने लगा। ऐसा माना जाता है कि इस एकादशी का व्रत भक्ति के साथ करने से सांसारिक बंधनों से मुक्ति मिलती है और महान यज्ञों या हजारों गायों के दान के बराबर आध्यात्मिक पुण्य प्राप्त होता है।