वैशाख अमावस्या की पूजा में पढ़ें ये चमत्कारी कथा, पितृ दोष से मिलेगी मुक्ति!

धर्म { गहरी खोज } : धार्मिक अनुसार वैशाख मास भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। और इस मास की अमावस्या तिथि का धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व होता है। इस मास की सभी तिथियां पुण्यदायिनी मानी गई हैं। किसी भी तिथि में किया हुआ पुण्य कोटि-कोटि गुना अधिक होता है। शास्त्रों में वैशाख अमावस्या को धर्म-कर्म, स्नान-दान और पितरों के तर्पण के लिए बेहद शुभ माना जाता है। यह पितरों को मोक्ष दिलाने वाली तिथि होती है। इसलिए शास्त्रों में वैशाख अमावस्या को पितरों को मोक्ष दिलाने वाली अमावस्या भी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा के दौरान व्रत कथा का पाठ करने से व्यक्ति पर पितरों का आशीर्वाद बना रहता है।
वैशाख अमावस्या की व्रत कथा
बहुत समय पहले की बात है। धर्म वर्ण नाम के एक ब्राह्मण थे। वह ब्राह्मण बेहद ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे। वो हमेशा व्रत-उपवास करते रहते व ऋषि-मुनियों का आदर करते और उनसे ज्ञान ग्रहण करते। एक बार उन्होंने किसी महात्मा के मुख से सुना कि कलयुग में भगवान विष्णु के नाम के स्मरण से ज्यादा पुण्य किसी भी कार्य में नहीं है। अन्य युगों में जो पुण्य यज्ञ करने से प्राप्त होता था उससे कहीं अधिक पुण्य फल इस घोर कलयुग में भगवान का नाम सुमिरन करने से मिल जाता है। धर्म वर्ण ने इस बात को आत्मसात कर लिया और सांसारिक जीवन छोड़कर संन्यास लेकर भ्रमण करने लगे।
एक दिन घूमते-घूमते वह पितृलोक जा पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि उनके पितर बहुत कष्ट में हैं। पितरों ने ब्राह्मण को बताया कि उनकी ऐसी हालत तुम्हारे संन्यास के कारण हुई है। क्योंकि अब उनके लिए पिंडदान करने वाला कोई शेष नहीं है। अगर तुम वापस जाकर अपने गृहस्थ जीवन की शुरुआत करो, संतान उत्पन्न करो तो हमें इस कष्ट से राहत प्रदान हो सकती है। इसके साथ ही उन्होंने ये भी बताया कि वैशाख अमावस्या के दिन विधि-विधान से पिंडदान करो। पितरों की बात सुनने के बाद धर्मवर्ण ने वचन दिया कि वह उनकी अपेक्षाओं को अवश्य पूर्ण करेंगे। इसके बाद धर्मवर्ण ने अपना संन्यासी जीवन छोड़ दिया और पुनः सांसारिक जीवन को अपना लिया। और फिर वैशाख अमावस्या की तिथि को विधि-विधान से पिंडदान किया और अपने पितरों को मुक्ति दिलाई।