थाईलैंड के राजा अपनी पहली भूटान यात्रा पर

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थिम्फू{ गहरी खोज } : भूटान की पहली यात्रा पर आये थाईलैंड के राजा महा वजिरालोंगकोर्न और महारानी सुथिदा का शुक्रवार को यहां पारंपरिक भव्य स्वागत किया गया। यह यात्रा कई दृष्टियों से ऐतिहासिक है – कूटनीतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और रणनीतिक।
यह महाराज महा वजिरालोंगकोर्न की राजसिंहासनारूढ़ होने के बाद पहली भूटान यात्रा है, जबकि उन्होंने पिछली यात्रा 1991 में एक युवराज के रूप में की थी। उनकी यह यात्रा न केवल भूटान-थाईलैंड संबंधों को एक नई ऊँचाई दे रही है, बल्कि यह भी स्पष्ट संकेत है कि भूटान अब भारत के पारंपरिक प्रभाव से बाहर निकलकर बहुपक्षीय संबंधों की ओर बढ़ रहा है।
आज पारो एयरपोर्ट पर भूटानी शाही परिवार द्वारा थाई राजा-रानी का पारंपरिक स्वागत किया गया। उनका काफिला ताशिछोजोंग की ओर रवाना हुआ जहाँ गार्ड ऑफ ऑनर, विशेष परेड और सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ आयोजित की गईं। इसी शाम, भूटान के राजा जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक और उनकी पत्नी रानी जेत्सुन पेमा द्वारा थाई सम्राट के सम्मान में राजकीय भोज दिया गया।
शनिवार को थाई शाही दंपत्ति कुजुग ल्हाखांग में 1000 बटर लैंप्स के प्रज्वलन और सामूहिक प्रार्थना सभा में भाग लेंगे, जहाँ 74 थाई और 74 भूटानी भिक्षु उनकी दीर्घायु के लिए प्रार्थना करेंगे।
राजनीतिक रूप से इस यात्रा की पृष्ठभूमि में थाईलैंड-भूटान के बीच नया मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) भी है, जिससे दोनों देशों के बीच व्यापार 1.3 करोड़ डॉलर से बढ़ाकर 12 करोड़ डॉलर प्रतिवर्ष करने का लक्ष्य है। इसमें भूटानी कृषि उत्पादों जैसे सेब, संतरे और आलू के थाई बाजारों तक पहुंच की बात की गई है।
यह संकेत देता है कि भूटान अब आर्थिक साझेदारी के लिए भारत के अतिरिक्त अन्य विकल्पों की तलाश में है। इससे भारत-भूटान के बीच व्यापारिक संतुलन और सामरिक स्थिति पर भी प्रभाव पड़ सकता है।
इस यात्रा का एक विशेष आकर्षण ‘गालेपु माइंडफुलनेस सिटी’ परियोजना रही, जहाँ थाईलैंड की निजी कंपनियाँ परामर्शदात्री भूमिका निभा रही हैं। यह परियोजना भूटान के आत्मनिर्भर विकास और बाह्य निवेश को आमंत्रित करने का एक मॉडल बन रही है।

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