सभी पक्ष अदालत पर भरोसा रखें

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संपादकीय{ गहरी खोज } : देश की सर्वोच्च अदालत ने वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 के कुछ प्रावधानों पर ‘अंतरिम आदेश’ जारी किया है, लेकिन कानून पर पूरी तरह रोक नहीं लगाई है।‘अंतरिम आदेश’ भी सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के जरिए, केंद्र सरकार की ‘अंडरटेकिंग’ के बाद ही, जारी किया गया है। प्राप्त संकेतों से ऐसा लगता है कि बिल सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक पीठ के पास जाएगा। इसलिए जब तक सर्वोच्च न्यायालय का अंतिम आदेश नहीं आ जाता तब तक इस बिल से जुड़े सभी पक्षों ने संयम से काम लेना चाहिए। हम सभी को भारतीय न्यायपालिका पर भरोसा रखना चाहिए। भाजपा के सांसद निशिकांत दुबे ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के प्रति जो टिप्पणियां की हैं,उसकी कठोर निंदा होनी चाहिए। भाजपा ने अच्छा किया जो अपने सांसद की इस टिप्पणी से पार्टी को अलग कर लिया।बहरहाल वक्फ संशोधन कानून पर

केंद्र की अदालत में सहमति रही कि अगले आदेश तक वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में कोई नई नियुक्ति नहीं की जाएगी। यदि राज्य बोर्ड में ऐसी नियुक्ति की जाती है, तो उसे ‘शून्य’, अमान्य समझा जाए। ‘वक्फ बाय यूजर’ की संपत्तियों, पंजीकृत, राजपत्रित या गैर-पंजीकृत, को ‘डी-नोटिफाई’ नहीं किया जाएगा। बताया जाता है कि ‘वक्फ बाय यूजर’ की 4 लाख से अधिक संपत्तियां हैं।जांच या सर्वे के बाद कलेक्टर वक्फ संपत्ति पर कोई आदेश जारी नहीं करेंगे। इन प्रावधानों पर सॉलिसिटर जनरल ने सर्वोच्च अदालत की न्यायिक पीठ को आश्वस्त किया है कि यथास्थिति बनी रहेगी। केंद्र 7 दिनों की स्वीकृत अवधि के दौरान अपने साक्ष्यों, दस्तावेजों और दलीलों के साथ जवाब सर्वोच्च अदालत में दाखिल करेगा।वैसे न्यायिक पीठ ने सुनवाई की अगली तारीख 5 मई तय की है, लिहाजा तब तक यथास्थिति बनी रहनी चाहिए। यहां गौरतलब यह है कि 13 मई को प्रधान न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना सेवानिवृत्त हो रहे हैं। जस्टिस भूषण गवई अगले प्रधान न्यायाधीश होंगे। जाहिर है कि नए सिरे से न्यायिक पीठ का गठन होगा। नए सिरे से मामले की सुनवाई होगी।सवाल है कि क्या यह मामला शीर्ष अदालत में लंबा खिंचेगा अथवा कुछ लटक कर रह सकता है। जस्टिस खन्ना ने इस मामले को ‘अपवाद’ के तौर पर ग्रहण किया। वह नहीं चाहते थे कि व्यापक स्तर पर कानूनी सुधार करने से पक्षकारों के मौलिक अधिकार प्रभावित हों, लिहाजा ‘अंतरिम आदेश’ भी जारी किया गया। बहरहाल वक्फ कानून के कुछ प्रावधानों पर यथास्थिति का ‘अंतरिम आदेश’ दिया गया है।

परोक्ष भाव से उन प्रावधानों पर रोक लगाई गई है, लेकिन संशोधित कानून के लगभग 40 अन्य प्रावधान हैं, जिन पर न तो यथास्थिति का आदेश है और न ही रोक लगाई गई है। अर्थात नया कानून अक्षरश: लागू है। सरकार उन प्रावधानों के तहत कार्रवाई कर सकती है। मुसलमान होने या इस्लाम के 5 साल के अभ्यास वाले प्रावधान को भी न्यायिक पीठ ने छुआ तक नहीं है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा है कि यह विशेष स्थिति है। हमने कुछ कमियों की ओर इशारा किया है। कुछ सकारात्मक चीजें भी हैं, लेकिन हम नहीं चाहते कि इतना बड़ा बदलाव किया जाए कि पक्षकारों के अधिकार प्रभावित हों। इस्लाम के 5 साल अभ्यास वाला प्रावधान भी है, लेकिन हम उस पर रोक नहीं लगा रहे। न्यायिक पीठ ने ‘लिमिटेशन एक्ट’ वाले प्रावधान को भी नहीं छुआ और न ही उस पर कोई आदेश दिया।

अदालत ने सिर्फ वक्फ के नए कानून पर ही आदेश जारी नहीं किए हैं, बल्कि 1995 और 2013 के वक्फ कानूनों के कई प्रावधानों पर भी नोटिस भेजे हैं। वक्फ गली-गली फैले हैं। वक्फ की करीब 47 प्रतिशत संपत्तियां पंजीकृत नहीं हैं। ये मुद्दे पहले के संशोधन कानूनों पर बहस के दौरान भी उठे थे, लेकिन कोई आखिरी फैसला नहीं किया जा सका। ज्यादातर मुस्लिम संगठन, पार्टियां और पर्सनल लॉ बोर्ड नए कानून को ही पूरी तरह ‘असंवैधानिक’ मान रहे हैं, लिहाजा वो कानून को ही निरस्त करने की मांग कर रहे हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का यह रवैया भी सही नहीं कहा जा सकता क्योंकि कानून संवैधानिक है या असंवैधानिक, इसका फैसला सर्वोच्च अदालत करेगी ना की कोई रजिस्टर्ड संस्था।

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