कोई शक्ति राष्ट्रपति को निर्देश नहीं दे सकती: धनखड़

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नयी दिल्ली { गहरी खोज }: उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका की असीमित स्वतंत्रता पर सवाल करते हुए गुरुवार को कहा कि कोई शक्ति किसी भी आधार पर राष्ट्रपति को कोई निर्देश नहीं दे सकती।
श्री धनखड़ ने उप राष्ट्रपति निवास पर राज्यसभा के छठे बैच के प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए कहा कि देश में ऐसी स्थिति नहीं बनायी जा सकती कि कोई राष्ट्रपति को निर्देश दे सके। न्यायपालिका की भूमिका परामर्श की है। उन्होंने कहा, “परामर्श सहमति नहीं है, परामर्श केवल परामर्श है।” उप राष्ट्रपति का यह वक्तव्य उच्चतम न्यायालय के हाल के
उस निर्णय के संदर्भ में महत्वपूर्ण है, जिसमें उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि राष्ट्रपति को विचार के लिए भेजे विधेयकों पर अधिकतम तीन महीने के भीतर फैसला करना होगा।
श्री धनखड़ ने कहा कि भारत के राष्ट्रपति का पद सर्वोच्च है। राष्ट्रपति संविधान की रक्षा, संरक्षण और बचाव की शपथ लेते हैं। यह शपथ केवल राष्ट्रपति और उनके द्वारा नियुक्त राज्यपाल लेते हैं। हर कोई, प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति, मंत्री, सांसद, न्यायाधीश, ये सभी संविधान का पालन करने की शपथ लेते हैं। उन्होंने कहा, “संविधान की रक्षा करने के लिए और संविधान का संरक्षण करने के लिए, वह भारत के राष्ट्रपति, सशस्त्र बलों के सर्वोच्च कमांडर की शपथ है।” उन्होेंने कहा कि हाल के न्यायालय के एक निर्णय द्वारा राष्ट्रपति को एक निर्देश दिया गया है।
उन्होंने कहा कि देश एक संकट की ओर बढ़ रहा है। इसके लिए सभी को अत्यंत संवेदनशील होना होगा। यह किसी के समीक्षा दायर करने या न करने का सवाल नहीं है। उन्होेंने कहा, “हमने इस दिन के लिए शपथ नहीं ली। राष्ट्रपति को एक समयबद्ध तरीके से निर्णय लेने के लिए कहा जा रहा है।” उन्होंने कहा कि इस तरह तो एक दिन न्यायाधीश कानून बनाएंगे, कार्यकारी कार्य करेंगे, ‘सुपर संसद’ के रूप में कार्य करेंगे और बिल्कुल भी जवाबदेही नहीं होगी क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता है।”
उन्होंने विधायिका की व्यवस्था के संबंध में कहा कि विधानसभा या संसद के किसी भी चुनाव में हर उम्मीदवार को संपत्ति घोषित करनी होती है। लेकिन न्यायाधीशों के लिए यह अनिवार्य नहीं है।
उप राष्ट्रपति ने कहा, “हम ऐसी स्थिति नहीं रख सकते, जहां भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दिया जाये।” उन्होंने कहा कि संविधान के अंतर्गत न्यायपालिका के पास केवल एक अधिकार है, वह अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या करना है। इसके लिए पांच या अधिक न्यायाधीश होने चाहिए। उन्होंने कहा कि जब अनुच्छेद 145(3) बना था तो उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या आठ थी और इनमें से पांच को निर्णय करना था, लेकिन अब न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या 30 है।
श्री धनखड़ ने कहा, “न्यायाधीशों ने जो राष्ट्रपति को एक आदेश जारी किया है और एक परिदृश्य प्रस्तुत किया है, यह देश का कानून होगा। न्यायपालिका संविधान की शक्ति को भूल गयी है।” उन्होेंने कहा कि अनुच्छेद 145(3) में संशोधन करने की जरूरत है। आठ में से पांच का मतलब होगा कि व्याख्या बहुमत से होगी। उन्होंने कहा, “ अनुच्छेद 142, अनुच्छेद 142 लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ एक परमाणु मिसाइल बन गया है, जो न्यायपालिका को 24 घंटें सातों दिन उपलब्ध है।”

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