आदि कैलाश यात्रा की वो 5 रहस्यमयी जगहें, जिन्हें विज्ञान भी नहीं समझ पाया!

धर्म { गहरी खोज } : हिंदू धर्म में आदि कैलाश यात्रा बहुत पवित्र मानी जाती है, जो शिव भक्तों के लिए बेहद महत्वपूर्ण होती है। उत्तराखंड में कई ऐसी रहस्यमयी जगहें हैं, जो आकर्षण का केंद्र बनी रहती हैं। आदि कैलाश यात्रा के दौरान बहुत से ऐसे स्थान हैं, जो खूबसूरती के साथ-साथ बहुत से रहस्यों को समेटे हुए हैं। इन रहस्यों के बारे में आज तक वैज्ञानिक भी नहीं जान पाए हैं। आइए आपको बताते हैं इन्हीं रहस्यमयी जगहों के बारे में।
ये हैं वो 5 रहस्यमयी जगहें
1.ऐसा माना जाता है कि दुनिया के पर्वतों पर प्राकृतिक रूप से ॐ अंकित है, जिनमें से सिर्फ एक को ही खोजा गया है और वह है ॐ पर्वत, जो पिथौरागढ़ जिले में कैलाश मानसरोवर यात्रा के दौरान बीच में पड़ता है। इस पर्वत पर बर्फ इस तरह गिरती है कि ओम का आकार खुद बन जाता है। यह आकार तीर्थ यात्रियों में आश्चर्य का केंद्र रहता है। इस जगह पहुंचे के लिए पहले धारचूला से गूंजी आना पड़ता है और फिर ॐ पर्वत के दर्शन कर वापस गूंजी आकर आदि कैलाश की ओर यात्रा करते हैं।
- आदि कैलाश की यात्रा के दौरान ज्योलिंगकांग से कुछ दूरी पर पड़ता है गणेश पर्वत, जिसमें बर्फ के कारण भगवान गणेश जैसी आकृति नजर आती है। यह पर्वत भी अपने आप में आश्चर्य का केंद्र है। इस गणेश पर्वत के सामने गणेश नाला भी है, जिसे पार करना काफी चुनौतियों से भरा है। इस पर्वत पर भगवान गणेश की आकृति जून-जुलाई महीने में दिखाई पड़ती है। आदि कैलाश की यात्रा के दौरान गणेश पर्वत भी यात्रियों के लिए रहस्यपूर्ण है।
- आदि कैलाश यात्रा के दौरान मालपा नामक जगह पड़ती है, जहां कभी एक बड़ी आबादी रहती थी। यह जगह कभी कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग का एक पड़ाव हुआ करती थी, लेकिन आज मालपा गांव का नामों-निशान मिट चुका है। इसकी वजह है 18 अगस्त 1998 में कुदरत का कहर। इस जगह पर भारी भूस्खलन हुआ, जिसकी वजह से पूरा गांव मलबे में दब गया, जिसमें 60 कैलाश यात्रियों समेत 300 लोगों की मृत्यु हो गई। आज भी कई शव इस मलबे में ही दफन हैं।
- आदि कैलाश पर्वत के पास एक जगह पर धान की खेती मिलती है, जो धान 14000 फीट की ऊंचाई पर खुद ही उगता है। जहां इतनी ऊंचाई पर कोई भी पौधा नहीं उगता, वहां धान की फसल खुद ही उगना अपने आप में एक रहस्य है। स्थानीय लोगों का मानना है कि पांडवों के अज्ञातवास के दौरान भीम ने इस जगह पर धान की खेती की थी, जिसके बाद से ही इस जगह पर हर साल धान खुद ही उग जाते हैं।
- आदि कैलाश यात्रा पर पड़ने वाले अंतिम पड़ाव गांव कुटी में आज भी पांडव महल के अवशेष मिलते हैं। इस जगह का नाम भी पांडवों की माता कुंती के नाम पर पड़ा है। साथ ही, यहां पर आज भी माता कुंती की पूजा की जाती है। कुटी गांव के सामने एक छोटा सा टापू है, जिस पर बाहरी व्यक्ति का जाना प्रतिबंधित है। ग्रामीणों का मानना है कि लंबे समय तक पांडव यहां महल बनाकर रहे थे, जिसके बाद ही सभी भाई कैलाश की ओर प्रस्थान कर गए। ऐसा माना जाता है कि माता कुंती ने इसी गांव में अपने प्राण त्यागे थे।