ग्रोथ हार्मोन क्या होता है, इंसान की लंबाई और चौड़ाई से इसका क्या है संबंध?

लाइफस्टाइल डेस्क { गहरी खोज } : ग्रोथ हार्मोन शरीर में बनता है। इसमें आई किसी प्रकार की कमी का असर व्यक्ति के शारीरिक विकास पर पड़ता है। यह हार्मोन मस्तिष्क में मौजूद ग्रंथी पिट्यूटरी में बनता है। ग्रोथ हार्मोन का सबसे ज्यादा उत्पादन 30 से 50 वर्ष की आयु में होता है।
बच्चों का शारीरिक विकास ग्रोथ हार्मोन (एचजी) पर निर्भर करता है। हालांकि व्यस्क लोगों में भी इस हार्मोन का खासा महत्व है। इस हार्मोन की कमी और अधिकता से कई गंभीर रोग भी होते हैं। यह हार्मोन मस्तिष्क में मौजूद ग्रंथी पिट्यूटरी में बनता है। हड्डियों की क्षमता और शारीरिक शक्ति को काफी हद तक यही हार्मोन प्रभावित करता है। यदि बच्चों में यह हार्मोन कम है तो उसके परिणाम खासे गंभीर हो सकते हैं।
बच्चों की ग्रोथ, शारीरिक बनावट और क्षमता को ग्रोथ हार्मोन (एचजी) लगभग 20 वर्ष तक प्रभावित करता है। इस आयु के बाद यह हार्मोन शरीर को संतुलित बनाए रखने में योगदान करता है। हालांकि 30 से 50 की आयु के बीच इस हार्मोन की अधिकता और कमी व्यक्ति को बुरी तरह से प्रभावित और पीड़ित भी कर सकती है। इस आयु में यह हार्मोन सबसे ज्यादा मात्रा में बनता है। जिसके कारण कई तरह के गंभीर रोग होने की भी समस्या रहती है।
बच्चों के लिए जरूरी है ग्रोथ हार्मोन
ग्रोथ हार्मोन का निर्माण मस्तिष्क की पिट्यूटरी ग्रंथि में होता है और वहीं से यह रक्त में पहुंचता है। यदि बचपन में बच्चों के सिर में गंभीर चोट लगती है तो कई बार पिट्यूटरी ग्रंथि प्रभावित हो जाती है और ग्रोथ हार्मोन के निर्माण में बाधा आ जाती है। इससे बच्चों का शारीरिक विकास धीमा हो जाता है। जिसके परिणाम में बच्चे कमजोर रहते हैं। उनकी मांसपेशियां और हड्डियां ज्यादा मजबूत नहीं हो पाती और ज्यादा बढ़ भी नहीं पाती है।
वयस्कों के ज्यादा हार्मोन से परेशानी
ग्रोथ हार्मोन का सबसे ज्यादा उत्पादन 30 से 50 वर्ष की आयु में होता है। अधिक आयु में हड्डियों की लंबाई और चौड़ाई नहीं बढ़ती, जिसके चलते यह हार्मोन उन्हें मजबूती प्रदान करता है। ज्यादा हार्मोन का उत्पादन होने से कई बार हड्डियां विकृत जरूर हो सकती हैं। ऐसा कई बार देखा भी गया है। वयस्कोंमें हड्डी का बढ़ना, टेढ़ा होना जैसी समस्याओं के लिए काफी हद तक यही हार्मोन जिम्मेदार होता है। जीएच की कमी के लक्षणजीएच की कमी के लक्षणों में शारीरिक कमजोरी, दुर्बलता, सहनशक्ति में कमी, व्यायाम की क्षमता में कमी, हड्डियों का कमजोर होना, बार-बार फ्रैक्चर होना, अत्याधिकथकान होना और चिंता व अवसाद, पेट के पास चर्बी जमा होना शामिल हैं।