आसमानी बिजली से 61 मौतें; देश में ऐसी मौतें तेजी से बढ़ रहीं, 3 गुना हुए मामले

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राजगीर{ गहरी खोज }: बिहार में आसमानी बिजली और गरज की आफत से पिछले 48 घंटे के भीतर कम से कम 61 लोगों की जान चली गई। हाल के कुछ बरसों में न सिर्फ बिहार बल्कि पूरे देश में वज्रपात से हुई तबाही और मौत का आंकड़ा काफी तेजी से बढ़ा है। आइये पूरे देश की स्थिति और बिजली गिरने के मामलों में आई तेजी के पीछे की वजहों को समझें।
बिहार के दर्जनों परिवारों पर पिछले दो दिनों में बिजली गिरी है। बिहार में आसमानी बिजली और गरज की आफत से पिछले 48 घंटे के भीतर कम से कम 61 लोगों की जान चली गई। सबसे ज्यादा मौतें (22) मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा में हुई। इसके अलावा पटना, भोजपुर, सिवान, गया में चार-चार मौतें, गोपालगंज, जमुई में तीन-तीन जानें, जबकि मुजफ्फरपुर, जहानाबाद, सारण और अरवल के दो-दो लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। वहीं, बेगूसराय, दरभंगा, सहरसा, कटिहार, मुंगेर, मधेपुरा, अररिया और भागलपुर के एक-एक व्यक्ति आकाशीय बिजली की वजह से अपनी जान गंवा बैठे। बिहार सरकार ने 4 लाख रुपये के मुआवजे की घोषणा मृतक के परिवार के लिए किया है।
हाल के कुछ बरसों में न सिर्फ बिहार बल्कि पूरे देश में वज्रपात से हुई तबाही और मौत का आंकड़ा काफी तेजी से बढ़ा है। अगर बिहार की बात करें तो 2020 में जहां एक साल में 83 मौतें हुईं। तो अगले साल यानी 2021 में ये बढ़कर 280 पहुंच गया। 2022 में 329 जबकि 2023 में 275 मौतें आसमानी बिजली की जजह से बिहार में हुईं। वहीं, इस साल अब तक यानी साल के चार महीने भी समाप्त नहीं हुए हैं, और 82 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। ये तो हुई बिहार की बात। पूरे देश के आंकड़े और भी चौंकाने वाले हैं। साल दर साल इस पैमाने पर तेजी से हो रही बढ़ोतरी भी काफी चिंताजनक है। आइये पूरे देश की स्थिति और बिजली गिरने के मामलों में आई तेजी के पीछे की वजहों को समझें।
एनसीआरबी के आंकड़ों के आधार पर किए गए एक अध्ययन से पिछले साल मालूम चला कि 2010 से लेकर 2020 का एक दशक बिजली गिरने की घटनाओं के मामले में काफी भयावह रहा। 1967 से लेकर 2002 के बीच जहां एक राज्य विशेष में औसत तौर पर 38 मौतें होती थीं। वहीं, 2003 से लेकर 2020 के बीच ये संख्या बढ़कर 61 पहुंच गई। 1986 में जहां राज्यों में होने वाली औसत ऐसी मौतों की संख्या 28 थी, वो 2016 में यानी तीन दशक में बढ़कर तीन गुना हो गई। 2016 में औसत तौर पर एक राज्य में 81 मौतें हुईं।
एनसीआरबी के अलावा ओडिशा के फकीर मोहन विश्वविद्यालय ने भी एक अध्ययन किया। जिस से पता चला कि 1967 से 2020 के बीच बिजली गिरने से 1 लाख 1 हजार 309 मौतें भारत में हुईं। यानी करीब दो हजार मौतें सालाना इस वजह से हो रही हैं। अगर ठीक-ठीक कहा जाए तो औसतन पिछले पांच दशकों में भारत में सालाना 1 हजार 876 मौतें दर्ज हो रही हैं। ओडिशा के रिपोर्ट में भी 2010 से 2020 के बीच आसमानी बिजली से होने वाली मौतों पर चिंता जताया गया था। सबसे ज्यादा ऐसी मौतों से प्रभावित होने वाले राज्य – मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और ओडिशा रहे हैं।
हालांकि, प्रति एक हजार वर्ग किलोमीटर के दायरे में होने वाली मौतों में बिहार की स्थिति सबसे खराब रही। यहां सालाना 79 मौतें दर्ज हुई हैं। इसके बाद एक हजार वर्ग किलोमीटर वाले पैमाने पर पश्चिम बंगाल का नंबर है। जहां 76 मौतें सालाना दर्ज हो रही हैं। वहीं, झारखंड में ये संख्या 42 रही है। भारत का सेंट्रल इंडिया यानी मध्य का इलाका 1967 ही से लगातार आकाशीय बिजली की घटनाओं को झेल रहा है। इसके बाद उत्तर पूर्व के इलाके ज्यादा प्रभावित हैं। उत्तर पूर्व में 2001 के बाद से इस पैमाने पर समस्याएं तेज हुईं हैं।

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