मणिपुर में भी वक्फ के खिलाफ नाराजगी, एनपीपी का एक नेता भी पहुंचा SC, कहा- एक्ट एसटी के अधिकारों के खिलाफ

नयी दिल्ली{ गहरी खोज } : कुछ समय पहले तक NDA के साथ रही एनपीपी के नेता की ओर से दाखिल याचिका में यह भी कहा गया कि वक्फ में संशोधन मनमाना है और मुस्लिम धार्मिक संपत्तियों को नियंत्रित करने की कोशिश है। यह संशोधन मनमाने तरीके से प्रतिबंध लगाता है और इस्लामी धार्मिक बंदोबस्तों पर सरकार के नियंत्रण को भी बढ़ाता है।
वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर सत्ता पक्ष इसकी लगातार तारीफ कर रहा है तो विपक्ष इसके खिलाफ लगातार मुखर है। कई सांसद इस अधिनियम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रूख कर चुके हैं। इस लिस्ट में मणिपुर विधानसभा में नेशनल पीपुल्स पार्टी इंडिया के नेता और क्षेत्रगाओ सीट से विधायक रहे शेख नूरुल हसन ने वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
खास बात यह है कि हसन की पार्टी एनपीपी कुछ समय पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनपीपी) का हिस्सा थी और बीजेपी की सहयोगी भी रही। लेकिन मणिपुर हिंसा को लेकर वह अलग हो गई थी। याचिकाकर्ता ने याचिका के जरिए इस संशोधन पर चिंता जताई है, जिसमें इस्लाम का पालन करने वाले अनुसूचित जनजातियों (एसटी) को अपनी संपत्ति वक्फ को देने से वंचित कर दिया गया है। उनका तर्क है कि यह प्रावधान उनके अपने धर्म का पालन करने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
वक्ट संशोधन अधिनियम 2025 की धारा 3ई अनुसूचित जनजाति के लोगों (5वीं या छठी अनुसूची के तहत) के स्वामित्व वाली भूमि को वक्फ संपत्ति घोषित करने से रोकती है। याचिका के अनुसार, “धारा 3ई के अनुसार संविधान की 5वीं अनुसूची या छठी अनुसूची के प्रावधानों के तहत अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों की कोई भी जमीन वक्फ संपत्ति के रूप में घोषित या स्वीकार नहीं की जाएगी। इसलिए इस तरह का प्रतिबंध अनुसूचित जनजातियों के लोगों को उनके धार्मिक अधिकारों का प्रयोग करने से रोकता है और यह भेदभावपूर्ण है।”
पिछले दिनों संसद के दोनों सदनों ने लंबी बहस के बाद वक्ट संशोधन विधेयक को पास कर दिया था, जिसे 5 अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस अधिनियम को मंजूरी दे दी थी। फिर सरकार की ओर से नोटिफिकेशन जारी होने के बाद 8 अप्रैल को इस एक्ट को देशभर में लागू कर दिया गया।
याचिका में यह भी कहा गया कि वक्फ में संशोधन मनमाना है और मुस्लिम धार्मिक संपत्तियों को नियंत्रित करने की कोशिश है। इसमें कहा गया है कि यह संशोधन मनमाने तरीके से प्रतिबंध लगाता है और इस्लामी धार्मिक बंदोबस्तों पर सरकार के नियंत्रण को भी बढ़ाता है, जो वक्फ की धार्मिक आजादी में बाधा डालता है।
इसमें आगे कहा गया है कि ये संशोधन वक्फ के धार्मिक चरित्र को भी विकृत करेंगे और साथ ही वक्फ तथा वक्फ बोर्डों के प्रशासन में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को अपरिवर्तनीय रूप से नुकसान पहुंचाएंगे। याचिका में यह भी कहा गया है कि उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ को खत्म करने का प्रावधान राम जन्मभूमि मामले में दिए गए फैसले के उलट है।
इससे पहले टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी, AAP विधायक अमानतुल्लाह खान के अलावा ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड , जमीयत उलमा-ए-हिंद और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम समेत कई अन्य लोगों और संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट का रूख किया है।